बेपनाह चाहत
बेपनाह चाहत
लोगों का छोड़ो, उनका क्या ही भरोसा हैं,
वो तो दोनों ही तरफ़ से बातें बनाया करते हैं।
तू सुना कर सिर्फ़ अपने होश और एहसासों की,
जो हमेशा ही सबको सही राह दिखाया करते हैं।
उनको नहीं लेना-देना, क्या सही क्या ग़लत हैं,
वो तो हर किसी पे उँगलियाँ उठाया करते हैं।
तू ध्यान दे सिर्फ़ अपनी नक़्श-ए-मंज़िल पर,
जिस पर चलना हमें माँ-बाप सिखाया करते हैं।
मुक़र जाना तो उनकी फ़ितरत में लिखा होता हैं,
वो 'जिधर दम उधर हम' से काम चलाया करते हैं।
तू बुलंद रख हौसला अपना कड़ी मुश्किलों में भी,
कुछ कर गुज़र के क़दम आगे बढ़ाया करते हैं।
मक़ाम दर मक़ाम तरह-तरह के लोग मिलते रहते हैं,
वो तो मुफ़्त की राय बाँटकर वक़्त बिताया करते हैं।
तू मुसलसल रह बेपनाह चाहत अपने दिल में लिए,
सब्र से कामयाबी हासिल कर नाम कमाया करते हैं।
