ख़ुमारी
ख़ुमारी
जब-जब तर-बतर होती है "रात पहले बारिश की",
मेरी सुखी यादों को भिगाकर शादाब करती है।
जो चढ़ने लगे मेंह का नशा उसके शबाब पर,
तो मेरे दबे अरमानों को छेड़कर बेताब करती है।
अपने दिल को बहलाते हुए, दिलकश ख़यालों से,
मैं हसरत-ए-दीदार को सजाकर ख़्वाब बुनती हूँ।
मगर ख़ुद को निहारते हुए, आईने के सवालों से,
ख़्वाब-ओ-ख़याल को तोड़कर बेनक़ाब करती हूँ।
तनहाई देने लगती है गवाही, जुदाई के हादसे की,
तब दोनों की ये ख़ुमारी उमड़कर सैलाब लाती है।
अँधेरा भी सहमा सा, सर-ए-राह ढूँढते हुए साहिल को,
ग़म-ए-जानाँ की परछाइयाँ डराकर तेज़ाब बरसाती है।
