अधूरी कहानी
अधूरी कहानी
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दीदार-ए-आलम के लिए दिन-रात तड़पता है
तुम्हारे ही नाम की माला जपते हुए धड़कता है
ख़्वाब-ओ-ख़यालों की दुनिया सजाते रहता है
ख़्वाहिशों का साज़ छेड़कर गुनगुनाते रहता है
हर घड़ी-हर पल साथ गुज़ारे लम्हों का मुनहसिर है
तुम्हारी ख़ुसूसियत यादों की सफ़र का मुसाफ़िर है
दूरी और मजबूरियों का हल ढूंढ़ते हुए बेहाल है
हमारी अधूरी कहानी में तन्हाइयों से दिल बहाल है
मेरी आंखों में देखो, इंतज़ार का कशा क्या होता है
मेरे दिल से पूछो, मुलाक़ात का नशा क्या होता है
