दर्द-ए-आशिक़ी
दर्द-ए-आशिक़ी
कारगर दवा के लिए पल-पल तड़पना होगा,
दिल लगाओगे तो दर्द से रिश्ता जोड़ना होगा।
अनचाहे दूर होकर सबसे, अपनों को कर पराया,
लाइलाज तरसते आँसुओं से गले लगना होगा।
इंतज़ार की आँच में तिल-तिल जलना होगा,
इश्क़ करोगे तो जुदाई से मुश्किल सामना होगा।
चाहे कर लो लाख़ जतन, या फिर मिन्नतें हज़ार,
शाम-ओ-सहर यादों के सहारे वक़्त गुज़ारना होगा।
बेचैनी के नशे में चैन को चूर-चूर करना होगा,
उल्फ़त में उलझोगे तो जी को आहें भरना होगा।
तोड़कर सारे बंधन, खो कर अपना होश-ओ-हवास,
साँसों को लुटाकर दीवानगी में धुत रहना होगा।
धड़कनों को ख़ामोशी से हौले-हौले चलना सीखना होगा,
मोहब्बत में आशिक़ी को बहरहाल बेक़रारी को सहना होगा।
पहनकर ग़म-ए-हिज्र पर, साज़-ए-रूह का नक़ाब,
सोज़-ए-ज़िंदगी में झूठ-मूठ की मिठास को घोलना होगा।
