ना-क़ाबिल-ए-बरदाश्त क़िरदार
ना-क़ाबिल-ए-बरदाश्त क़िरदार
1 min
261
दिन-ब-दिन बढ़ते जा रही है उसकी बदसुलूकी यों,
के उससे हर एक अपना अब हो रहा है बेहद बेज़ार।
कतई बाज़ ही नहीं आ रहा है वक़्त की मार से भी,
होते जा रहा है उसका बरताव इतना ज़ियादा ख़ूँख़ार।
बेअसर हैं उस पर सलाह, मशवरा, मशवरत, सबकुछ,
नज़र नहीं आ रहें हैं उसका रवैया सुधरने के कुछ आसार।
कैसे करेगा कोई बद-मिज़ाज का एहतराम इस अंजुमन में अब,
जानने के बाद उसका ना-क़ाबिल-ए-बरदाश्त क़िरदार।
