जज़्बात की जंग
जज़्बात की जंग
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बेमुरव्वत की बेहूदा हरकतों से, हम बेहद हैरान हो गए हैं,
'न निगल सके न उगल सके', ऐसे पेचीदा हालात हो गए हैं।
आख़िर क्या ख़ामियाँ रह गई उसकी परवरिश में हमसे?,
सोचकर दिनरात ऐसी बातों से, दुश्वार इख़्तिलात हो गए हैं।
बुढ़ापे का सहारा बने जो, वही क़दम लड़खड़ाने लगे नशे के धुएँ में,
तो बद-ताल्लुक़ खून के रिश्ते ही, संगीन सवालात हो गए हैं।
