बे-नाम सा ये दर्द
बे-नाम सा ये दर्द
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूं नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नहीं जाता
बे नाम सा ये दर्द ठहर क्यूं नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुजर क्यूं नहीं जाता
बे हिसाब सा दर्द ए दिल तू मुकर क्यूं नहीं जाता
जो चोट तुझे लगी है वो भूल क्यूं नहीं जाता
बे वजह का तड़पना ए मुसाफिर तू भूल क्यूं नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुजर क्यूं नहीं जाता।
