मिलना था इत्तिफ़ाक़
मिलना था इत्तिफ़ाक़
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना दिल के करीब था
उसकी यादों का आना दिल का दस्तूर था
आकर मुझे यूं ही तिल तिल तड़पाना एक फितूर था
टूटकर भी उसको चाहना मेरा बस गुनाह था
दिल था उसका क्या कसूर था
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे आज रोना आया था
जाने क्यों तेरे नाम पे रोना आया था
कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला था
अब क्या बताऊं दर्द ए दिल की दास्तान मेरे दोस्त
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया था
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना दिल के करीब था।।
