पुकार
पुकार
बस पेट की आग बुझ जाये
आग चाहे जमाने में लग जाये
बस परिंदे अपना आशियाँ ना बदले
दरख्त से पत्ते चाहे सब गिर जाये
वो एक सिक्का जो खोटा सही
क्या मुमकिन,बाज़ार की किस्मत बन जाये
बहुत ख्वाब देखते हो तुम
तुम्हारी आँखे नीली ना पड़ जाये
अब मौसम बरसात का आ गया
क्या पता हमारे भी पर निकल जाये।
