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Lokanath Rath

Romance Tragedy Classics

4  

Lokanath Rath

Romance Tragedy Classics

खामोशी

खामोशी

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मेरी खामोशी को तुम मेरे डर न समझना,

तुम तो गैरों से बढकर हों, तुम्हे जवाब क्या देना।

मे खामोश हूं पर कुछ भुला नहीं,

पर तुम्हारे बातो का मुझ पे कोई असर नहीं।


भूल तो वो जाते, जो कुछ समझते नहीं,

कियूं की उन्हें रिश्ते निभाना आता नहीं।

रिश्ते की अहमियत क्या है, वो क्या जाने?

भूलना उनकी शौक है सायद, ए अच्छा लगता है उन्हें।


हम तो उन्हें बहुत प्यार करते थे,

उनकी सारी बातें हमें अच्छे लगते थे।

उनकी वो आँखों की चमक सब बोलता था,

देखते ही हम को समझ आजाता था।


वो जब कभी रूठा करते थे,

और उनकी खामोशी सिर्फ बोलते थे।

उसमे भी कुछ अलग सुकून मिलता था,

जो हमारे दिल को छू जाता था।


उनकी ओठों पे वो मुस्कुराहट कुछ अजब था,

उसे देखते ही सारे गम भूल जाता था।

जब वो और हम साथ साथ होते थे,

मानो जैसे प्यार की बारिश होते थे।


उन्हें देख के हम सायर बन जाते थे,

वो भी उसका मजे लेते थे।

दोनों मिलकर कसम खाए थे,

उम्र भर साथ रहने की सपने देखे थे।

पर अचानक ना जाने क्या हों गया,

हमारे प्यार मे ग्रहण लग गया।


वो हम से कहीं दूर चले गए है,

उनकी इंतज़ार मे हम बैठे है।

जुदाई की दर्द दिल मे छुपा हुआ है,

हम खामोशी से सब झेल रहें है।

मेरी ये खामोशी को ठीक से समझ लेना,

हम तुम्हें भूले नहीं, आसान नहीं है तुम्हें भूल पाना।


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