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Lokanath Rath

Inspirational Others

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Lokanath Rath

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नादानी और तजुर्बे...

नादानी और तजुर्बे...

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मन तो कर रहा है कि उछल कूद करूं,

बीते हुए कल को फिर से बांहों में भरूं।

वो कल भी मुझे पकड़ के रोते हुए बोलेगा,

और मुझसे बहुत शिकायत करेगा।

ये आज को देख थोड़ा घबराएगा,

सोच के कि कैसे इससे पीछा छुड़ाऊंगा।

यही आज तो है जो उसे छोड़ आया,

उसे अतीत के पिंजरे में बन्द कर दिया।

वक़्त को सारा किस्सा मालूम है,

वो सब कुछ तो देखता ही रहा है।

ये कल और आज को हैरान कर देता है,

और मन बेचारा चुप चाप बैठा आईने से पूछता है।

आहिस्ते आहिस्ते बढ़ रही है चेहरे की लकीरें,

शायद नादानी और तजुर्बे में बंटवारा हो रहा है।

तब मन का आईना जवाब देता है,

कुछ इस तरह वो बोलता है।

नादानी तो अपनी जगह, तजुर्बे भी अपनी जगह,

और चेहरे लकीरों से डर रहा है बच्चे की तरह।

तब फिर वो दिखाता है नादानी के कुछ किस्से,

और उस पर कैसे फिर रखूं भरोसा?

तब की बात कुछ अलग था,

नादानी को ठीक करने का एक जज़्बा था।

धीरे धीरे फिर उस नादानी ने बहुत सिखाता गया,

और वक़्त के साथ साथ वो कल होकर रह गया।

सीखते सीखते बड़ा गजब हो गया,

दुनिया ने उसे तजुर्बे का नाम दिया।

अब वही तजुर्बे बड़ा काम आता है,

वो नादानी से बचाता रहता है।

ये नादानी और तजुर्बे तो बहुत करीब है,

सदा दोनों साथ साथ ही तो रहते हैं।

हाँ ये सच है कि कल की नादानी सब जानते हैं,

और आज के तजुर्बे को सब सलाम करते हैं।

आज ये चेहरे की जो लकीरें बढ़ रही हैं,

शायद और कुछ वो कह रही है।

ये मन का आईना फिर बोल रहा है,

नादानी और तजुर्बे को साथ साथ दिखा रहा है।

फिर मन अपने आप को पढ़ने लगा,

नादानी और तजुर्बे को परखने लगा।

बीते हुए कल को धीरे से समझाया,

और आज के साथ समझौता किया।



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