रौशनी
रौशनी
ये रौशनी की बाते मत किआ करो,
उसकी चाल को तो कभी समझा करो।
जब अंधेरे मे हम उसे धुंढ़ते है,
उसके लिए बहुत तड़पते है।
उसने उसकी थोडीसी झलक दिखाती है,
कभी साथ रहने की वादा नहीं करती है।
मुस्कुराते हुए रात की अंधेरे मे आती है,
अपनी जलवा दिखाती है।
हम भी उसे देख कर ख़ुश होते,
उसकी सहारे जिन्देगी जी लेते।
तब रात मे वही रौशनी अच्छी लगती है,
जो हमारे आँखों की सहारा बनती है।
उसकी मुस्कान के पीछे क्या है नहीं पता,
पर वो तो चाँद की चांदनी है, जिसमे है
शीतलता।
वो शान्त सुन्दर शीतल और कोमल है,
उसकी रोशन रात को चमकाता है।
वही रौशनी कितनो की मन मे बस जाती,
उसे देख कितने लबसों को बारिश होती।
कुछ मिलकर सायर के शायरी बन जाते,
कुछ फिर कोई गीतकार के गीत बन जाते।
अंधेरे मे रौशनी के साथ शीतल हवा के झोका,
कभी प्रेमियों के दिल मे जगाता भाब प्रेम का।
ये सच मे तब बहुत सुन्दर लगती है,
तन मन दिल को छू जाती है।
पर जब रात की अन्त हों जाता,
सूरज दिन होने का आगस करता।
मन थोड़ा उदास तो ही होता,
पर खुशी खुशी नई दिन के स्वागत करता।
जैसे जैसे दिन बढ़ता ही जाता,
सूरज का रौशनी भी तेज होने लगता।
उस तेज से सारे जग डरने ही लगता,
उसे तब छुपकर अंधेरे मे रहने को मन करता।
उस कड़क रौशनी को सब धूप बोलते,
और उसका तेज से सब डरते।
यही कड़क रौशनी कितनो की भी जान ले लेती,
कभी किसीको थोडीसी सुकून नहीं देती।
सब इस रौशनी से बचना चाहते हैं,
अलग अलग तरीके अपनाते हैं।
ये जो रौशनी के दो अलग अलग रूप,
रात की चांदीनी और दिन की धूप।
कहता है कुछ अपनी काम करके,
दिखाता है रस्ते जिन्देगी के सच और झूठ के।
समझ मे आया तो अच्छा असर कर जाता,
नहीं तो सब उलटा पालटा हों ही जाता।