नयनों का समंदर
नयनों का समंदर
बड़ा दर्द, बेदर्द जीवन बड़ा है।
समंदर भी लोचन का निर्जल पड़ा है।
वही रूखा जीवन, वही रूखी दुनियां।
रुका न कभी, यूं ही चल पड़ा है।
समंदर भी लोचन का निर्जल पड़ा है।
सावन तो बस आता जाता रहा है।।
कहीं मेघ बरसे, कहीं सुखा पड़ा है।
नयनों से बरखा, बरस भी न पाई।
पलकों में अश्रु अटका पड़ा है।
समंदर भी लोचन का निर्जल पड़ा है।
सुख, दुःख का मौसम है, आता जाता रहेगा।।
न रुका है, रुकेगा, बस चल पड़ा है।
कभी तो छटेगा दुःख की निशा का बसेरा।।
ठहर जा तू संग इसके क्यूं चल पड़ा है।
समंदर भी लोचन का निर्जल पड़ा है।