कल्पना
कल्पना
मौसमों के नाम न होंगे ,
तुम जब आओगे ।
कैसे किसी पल को,
करीब पाओगे ।।
छूना भी जरूरी नहीं,
अहसास के लिए ।
एक एक आखर ,
बिखर जाओगे ।।
सिमटाना भी नहीं,
कलम में तुम्हें ।
ऋचा होकर भी
श्रुति बन जाओगे ।।
नदिया बहेंगी ही ,
पुलों के बिना भी ।
किनारों पे सरकते
घरोंदे बन जाओगे ।।
निश्चित ही जलना है,
किसी दिन मुझे ।
तुम आओगे कपूर
या सुगंध बन जाओगे ।।