बृजांगना उलाहना
बृजांगना उलाहना
तेरी मोहनि सांवरे टोना सो करि जाय।
जेतो डूबौं श्याम रंग तेतो मन हर्षाय।।
अपने रंग-रंग लै मोहे कोरी चूनर मोर।
जबै रंगेगी चूनरी रुखिहौं गोज मरोर।।
तू छलिया ठगिया प्रखर बिखरी लृटो चैन।
कान्हाँ तेरी बांसुरी मधुर बजै दिन रैन।।
ग्वाल सखा सब गैल मँह करौ दही हित रार।
मोय जानो घर सास रे ! देऊँगी काल्ह उधार।।
गगरी फोरी दधि लुटो छलिया नंदकिशोर।
बिसर गयी सुधि आपनी चित्त हरो चितचोर।।
कान्हाँ तेरी बाँसुरी रह रह कैं अचकाय।
विपिन बजै श्रवनन परै रग रग मद लहराय।।
लाला तेरो ढीट री ! मैया लै समुझाय।
गगरी फोरी लथपथ भई, जू अधरन मुस्काय।।
राजघराने कौं दही ले जावैं बृजनार।
मैया डगर मंझार में, लूटे ठानै रार।।
वट तर बंशी सुर छिडे, कहय करै री ! रास।
भई श्याममय हा सखी ! मीठी सुरति सुबास।।
तिदरी की सांकर दई, सोई सखि मैं सांझ।
बजी बेनु चितचोर की, दौरी काजर आंझ।।
जाके छवि नैनन बसी, ताको हिय मँह ठौर।
जहाँ श्याम तँह राधिका, नाहिं ठौर कौं और।।
नंदनवन के कुंज मँह खिली पूर्णिमा रात।
शरद सुहावन चंद्रिका, रास मथै प्रति गात।।
गोपिन सों रूसे प्रखर, लौना घरै लगाय।
तू भोरी नटनी सखी, मैं सूधो हों माय।।
लिलहारी तुमकौं नमन, सुनियो टेर मुरार।
तुम बिन कौन उबारि है, जगन्नाथ करतार।
