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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

जैसे-जैसे समय गुजरता गया

जैसे-जैसे समय गुजरता गया

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जैसे-जैसे यह समय गुजरता गया

वैसे-वैसे सब कुछ ही बदलता गया

मेरे मित्र बदले औऱ रिश्तेदार बदले

माता-पिता स्नेह वैसा का वैसा रहा


वक्त का कारंवा यूँही गुजरता गया

सबका साखी के साथ दगा ही रहा

जिनको आंख मूंद सगा मानता रहा

उनके ही द्वारा आखिर में ठगा गया


जूं-जूं समय का पहिया घूमता गया

त्यों-त्यों सफर में अकेला होता गया

मुफलिसी का वो दौर कुछ ऐसा चला

अपना ही लहूं, साखी रंग बदलता गया


जब मैंने पाया था, सफलता का दामन

तब लोगो को नजरिया बदल सा गया

ऐसे छद्म रिश्तों का दरिया बनता गया

अनजानों का भी, में चेहता बनता गया


सफलता का कुछ दुष्प्रभाव यूं हुआ

अपनों का रवैया, जल्द बदलता गया

आग से ज्यादा तो इस ईर्ष्या रानी से 

मेरा हर नजदीकी रिश्ता जलता गया


जैसे-जैसे यह समय गुजरता गया

वैसे-वैसे सबकुछ ही बदलता गया

हकीकत में भीतरी आईना वही रहा

पर बाहर का नजारा बदलता गया


अंत मे हाथ मेरे कुछ भी नही आया

रेत सा उम्र का तारा फिसलता गया

जब तलक जिंदगी को, मैंने समझा,

तब तक पंछी आसमां में उड़ गया


समय रहते संभल भी जा तू, साखी

आदमी अकेला आया, अकेला गया

ले हरि नाम, इससे पत्थर भी तर गया

व्यक्ति का कर्म यहां आया ओर गया।


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