साझा कुटुम्ब
साझा कुटुम्ब
दिल के दर्द को कोई ना जाने
अपने तो बिलकुल भी ना मानें।
रीत पुरानी नई दुल्हन लगे सयानी
बरस बीते फिर दिखे वही कहानी।
झगडे की जड़ को बिन जाने, झगड़ा हो
सील बट्टे पर रोज़ पीसे रोज़ ही रगड़ा हो।
दिल के दर्द को कोई ना जाने
अपने तो बिलकुल भी ना मानें।
रीत पुरानी नई दुल्हन लगे सयानी
बरस बीते फिर दिखे वही कहानी।
झगडे की जड़ को बिन जाने, झगड़ा हो
सील बट्टे पर रोज़ पीसे रोज़ ही रगड़ा हो।