"बड़ा भाई"
"बड़ा भाई"
जब भी कभी मैं डर जाता था,
वो सीना तान खड़ा होता था,
अपनी मुस्कान की छांव तले,
हर आँधी को रोक लेता था ।
रोटियाँ चाहे दो ही हों,
वो भूखा रहकर , हमें खिलाता था ,
नई किताबें, नए खिलौने,
अपने हिस्से से कटवाता था ।
रक्षा का बंधन बँधे बिना,
वो हर दिन रक्षा करता था ,
पापा की डाँट हो या दुनिया,
वो सबसे पहले लड़ता था ।
ख्वाब हमारे आँखों में हों,
पर नींद उसी की उड़ जाती थी,
हम चलें रोशनी में सब,
उसकी आखें रातो में जल जाती थी ।
जेब में पैसे कम हों जब,
ख्वाहिश हमारी पूरी करता था,
कभी उधारी, कभी किस्मत से
हमें खुशियाँ से वो भरता था ।
उसके जूते फटे रहे पर,
वो जेब हमारी भरता था ,
वो पीछे चलता रहा सदा,
हर राह पर आगे करता था ।
हर ताली पे मुस्कुराता वो,
जब हमने कुछ पाया था,
खुद के जख़्म दिखाए नहीं,
प्यार लुटाया, जताया नहीं।
आज अगर कुछ बन पाए हैं,
तो उसकी मेहनत रंग लाई है,
वो चुपचाप सब सहता था,
दुनिया में अकेला रहता था ।
तो झुकते हैं सिर उसके आगे,
जिसने खुद को मिटाया है,
हर घर में इक ऐसा भाई
भगवान ने भिजवाया है।
तनहा शायरहूँ-यश
