अपनापन
अपनापन
रिश्ते में जब अपनापन नहीं रहता तो
उस रिश्ते का दाह-संस्कार हो जाता।
रिश्ते में कुछ नहीं होता
बस एक अपनापन ही होता।
रिसोर्ट से अच्छी सुख-सुविधा कहाँ
पर वहाँ घर-सा अपनापन नहीं होता।
वही घर, जब टूटता तो
मासूमों का अपनापन ही छीन जाता।
वो बच्चों का कहना, माँ पैसे देना
वो माँ का कहना, पापा के ड्रा से ले लेना
अधिकार से पैसे ले लेना।
वह दौलतखाना ढहता तो
वह अधिकार छूट जाता,
आत्मज-आत्मजाओं का अपनापन ही छिन जाता।
पापा, आज छोले-भटूरे है खाना,
माँ, आज सिनेमा है जाना,
मम्मी-पापा रविवार को घूमने है जाना,
मुझे इस बार ये ला देना, फिर वो ला देना।
इन फरमाइशों का बाज़ार लूटता तो
सब अधिकार छूट जाता,
सुत-सुताओं का अपनापन ही छिन जाता।
माँ, पापा से बोलो ना,
आज स्कूल नहीं जाना।
यह छोटी-छोटी बातें
बड़ी-बड़ी खुशियाँ,
ये छोटी-बड़ी बातें, अर्थ खो दे तो
तब अधिकार छूट जाता,
लाडली-लाडलों का अपनापन छिन जाता।
हक से लड़ना, रोना, चिल्लाना
फिर एक दूसरे को माफ करना
गले लगाना, प्यार करना, वादे करना,
घर का माहौल रमणीय हो जाना।
फिर इन क्षणों में ज़हर घुल जाए तो
सब अधिकार छूट जाता
तनय-तनयाओं का अपनापन छिन जाता।
अपना ईश्वर, अपना आंगन,
अपना बाग, अपना घर,
छोटी-बड़ी हर चीज़ में अपनत्व।
फिर वो अपनत्व रूठ जाए तो
हर अधिकार छूट जाता
नंदन-नंदनियों का अपनापन छिन जाता।
मासूमों का मुस्कुराता चेहरा मुरझाना,
एक ही पल में बड़े बन जाना।
आँसुओं को पलकों में छुपाना, सीख लेना,
जिंदगी के इतने एहसासों को
एक साथ, एक पल में जी लेना।
इन एहसासों के कटु अनुभवों को सहना पड़े तो
सब अधिकार छूट जाता
मासूम बच्चों का अपनापन छिन जाता।
रिश्तों में कड़वाहट आ जाना,
निर्दोषों का बेघर हो जाना,
बिना कसूर सज़ा पाना,
बच्चों का अनाथ-सा हो जाना।
अपना साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो जाए तो
अपना अधिकार छूट जाता
अनाथो का अपनापन छिन जाता
और रिश्ते यूँ ही दफन हो जाते।