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Abhass Kumar

Drama Romance Others

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Abhass Kumar

Drama Romance Others

तुम आवाज़ देना मुझे

तुम आवाज़ देना मुझे

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जब सूरज अपने घोड़ों सहित

खो जाये सागर किनारे नित,

नवीन अंधकार से प्रभावित 

आसक्त सा विरक्त हो चित्त,

स्वयं के अश्रुजल में निर्मित

लड़खड़ाते दीपक लौ से विकसित 

उन चमकती मोतियों में अंकित 

जब मेरी छवि देखो तो 

तुम पुकार लेना मुझे। 

जा रहा था अगर,

तुम आवाज़ देना मुझे। 


जब ग्रीष्म अकुलाये नर-नारी-किन्नर,

वृक्ष, पशु, नभचर, जलचर

कभी इधर और कभी उधर 

सब ओर ढूंढ़ते शीतल निर्झर,

मिले छाँव उन्हें बस पल भर

अथवा साँझ की भीनी आँचर,

प्यास बुझी तो आस के स्वर 

जब मेरा निःश्वास लगे तो,

तुम पुकार लेना मुझे। 

जा रहा था अगर,

तुम आवाज़ देना मुझे। 


गूँज उठे जब गगन में गर्जन,

विशाल समुद्र से कर जल अर्जन,

विराट रूप धर नीरद दर्जन 

सृष्टि का करें पूर्ण परिमार्जन,

कठोर ताप ने किया जो भर्जन

प्रफुल्लित वर्षा से हुआ हर सज्जन। 

हँसते हँसते कर व्यथा हर वर्जन 

जब मेरे अट्टहास सुनो तो,

तुम पुकार लेना मुझे। 

जा रहा था अगर,

तुम आवाज़ देना मुझे। 


शिशिर ऋतु में प्रातःकाल 

जब उषा को घेरे धूमजाल,

भेदें उसे मृदु किरण भाल,

बिछे धरा पर कुश-शैवाल। 

उन्नत हों जब सब वृक्ष छाल,

ओस से भिंगे सब फूल निहाल,

उन सुवासित हवाओं में डाल 

जब मेरा इत्र सूंघो तो,

तुम पुकार लेना मुझे। 

जा रहा था अगर,

तुम आवाज़ देना मुझे। 


छिन्न हुए सब दैत्य दारुण,

मुक्त हुई ये सृष्टि अभीरुण

नव निर्माण पुनः कर वरुण 

संग अपने मित्र अरुण। 

सुन सब अभिलाषा करुण,

स्वयंभू है जो, बना अब तरुण,

भरण करने वाला वो धरुण

जब मेरा आभास बने तो,

तुम पुकार लेना मुझे। 

जा रहा था अगर,

तुम आवाज़ देना मुझे। 


तोड़ दो अब तुम सारी तृष्णा,

बंसी धुन फिर छेड़ो कृष्णा। 

फिर अश्रुधार मुक्तामाल बनेगी,

हर होंठ पर फिर हंसी छजेगी।

एक और बार आवाज़ लगाना,

फिर अपना अधिकार जताना,

बन राधे फिर आऊंगा मैं,

पुनः रास रचाऊँगा मैं। 

 

 


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