कैसे-कैसे लोग हो गये है,इस ज़माने में
ओरों को देखते,खुद न देखते,आईने में
जब देखेंगे,वो भीतर के इस तहखाने में
पीना छोड़ देंगे,दुनिया के इस मयखाने में
उन्हें मजा आता है,दूसरों को सताने में
पीर पराई भुलाई,उन्होंने इस ज़माने में
कैसे-कैसे लोग हो गये है,इस जमाने में
खुद को छोड़कर,लगे दूजों को पटाने में
उन्हें मजा आता,चापलूसी रोटी खाने में
बहुत व्यस्त है,नेताओ के तलवे चाटने में
सब लोग लगे है,बस अमीरो को मनाने में
गरीबों से तोड़ रहे है,वो दोस्ती दो आने में
सब लगे हुए,बस गरीबों को ही दबाने में
सब लगे हुए,अपनी ही कमियां छिपाने में
जब पता चलेगी,अपनी कमियां जमाने मे
छोड़ देंगे टांग लगाना,फ़टे हुए पायजामें में
सुधरो,न उलझो दूसरों के अफ़साने में
छोड़ दो गलती करना,जाने-अनजाने में
कैसे-कैसे लोग हो गए है,इस जमाने मे
स्व छोड़,व्यस्त दूजो को वस्त्र पहनाने में
छोड़ दे भीख लेना-देना,स्वार्थी ज़माने में
कोटि धन-दौलत है,भीतर निज ख़जाने में
छोड़ व्यर्थ पचड़े,सुलझा तू खुद के लफड़े
हर सवाल के जवाब है,भीतर तहखाने में
काम,लोभ,ईर्ष्या,आदि ने क्या कमी रखी?
तुझे इस दुनिया के झमेले में उलझाने में
हर समस्या की दवा है,भीतर दवाखाने में
खा सच गोली,मिटा झूठ,आ जा उजाले में
हर जख्म और गम का एक मर्ज है,जमाने मे
रोना छोड़ दो,मुस्कुराओ,हर गम के फ़साने में
कोई मदद को नही आयेगा दुःख आ जाने पें
फिर क्या अर्थ,सबके सामने यूँ गिड़गिड़ाने में
खुद की मदद खुद ही करो,तुम जमाने मे
वक्त जाया नही करो,कभी तुम सुस्ताने में
लगातार कर्म करो,लक्ष्य तक पहुंच जाने में
बढ़ाओ कदम,ऊंची उड़ान के अफ़साने में
लोग कैसे हो,पर निंदा त्याग दो,ज़माने में
खुशहाल रहोगे,तुम जीवन के हर मुहाने में
स्व कमियां देखो ओर दूर करो,तुम आईने में
कुंदन से खिलोगे जब जलोगे,सही मायने में
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"