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shaily tripathi

Drama Others

4.5  

shaily tripathi

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मुखौटे क्यों ???

मुखौटे क्यों ???

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असली-नकली चेहरे वाले, इनसान यहाँ क्यों रहते हैं ?

चेहरे को छिपा मुखौटे में, आपस में मिलते रहते हैं ?

ऐसे में कौन मिला किससे, क्या हासिल है इस परिचय से? 

किसकी क्या असली सूरत है? पहचानेंगे आखिर कैसे?


है मित्र या की दुश्मन कोई , लड़का है या लड़की कोई?

मिल कर इससे फंस जायेंगे, या हित-चिन्तक पा जायेंगे?

कैसे यह द्विविधा सुलझेगी, सच्चाई कैसे उभरेगी?

यह भोला-भाला चेहरा है, या आस्तीन का छुरा है?

यह 'हनी-ट्रैप' बर्बादी का, या द्वार सुनहरे अवसर का?

कैसे इसका निर्णय होगा यदि सत्य मुखौटे में होगा?


क्यों लगा मुखौटे घूम रहे, क्यों असली सूरत छिपा रहे 

आख़िर क्यों ये दुनिया वाले, अपने से ख़ुद को छिपा रहे?

दुनिया से तुम छिप जाओगे, कैसे ख़ुद को झुठलाओगे

अपने अन्तर की आँखों को, तुम धोखा ना दे पाओगे...


अंतर्मन की आवाज़ कान में नहीं, हृदय में बजती हैं,

अपनी ऑंखों में गिर जाना, जीवन की चरम त्रासदी है,

नादानी में ले आड़ मुखौटों की, तुम खुश हो सकते हो

सारी दुनिया को धोखा दे, तुम ख़ुद में ख़ुश हो सकते हो

यह तथ्य जान लो झूठ, मुखौटों से, पहचान नहीं बनती,

मानव की सुन्दर, अच्छी छवि, सच्चाई बिना नहीं बनती


क्यों वक्त बिताया स्वांगो में, क्यों सच का आग्रह किया नहीं?

परछाईं में गुम रहे, प्रकाशित जीवन क्यों कर जिया नहीं ?

नासमझी में तुम क्यों असली पहचान छिपाए फिरते हो?

अपने मन के निर्मल दर्पण को, म्लान बनाकर रखते हो ?

बीतेगा समय जवानी का, एक रोज़ बुढ़ापा आयेगा...

क्या नष्ट किया नादानी में, तुमको एहसास करायेगा,

तब जान सकोगे मूल्य, सत्यता का और झूठे चेहरे का

फिर तुम पछताते जाओगे, निस्तार न होगा इस दुःख का 


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