"चापलूसी का दामन"
"चापलूसी का दामन"


खुद्दारी के दामन में उनका ही दम घुटता है।
जो चापलूसी से सांसो का रिश्ता रखता है।।
वो बिना किये,बहुत कुछ पाना चाहता है।
जो हराम का खाने की आदतें रखता है।।
वो ही लोग चापलूसी धर्म निभा सकते है।
जो अपनी खुद्दारी को बेच आ सकते है।।
वो ही चापलूसी को होशियारी समझता है।
जो कर्महीन हों,झूठ की आत्मा रखता है।।
खुद्दारी का दामन उन्हें ही शूल लगता है।
जो यहां चापलूसी से अपना पेट भरता है।।
चापलूसी उन लोगो को ही मधु लगता है।
जिनको सत्य-स्वाभिमान बुरा लगता है।।
पर वो चेहरा बिन आग धूं-धूंकर जलता है।
जो बेईमानी,चापलूसी से सम्बंध रखता है।।
अंत मे जिनका सत्य-स्वाभिमान टिकता है।
वो जीवन अंगारों में फूल बन ख़िलता है।।
इसलिये साखी साथ छोड़ दे,चापलूसों का।
इससे तेरी ही साख़ पर कलंक लगता है।।
अकेला रह,पर चापलूसों से कोसो दूर रह।
चमचा जिसमें रहता,उसे खाली करता है।।
जो चापलूस दुनिया से सावधान रहता है।
अपनी खुद्दारी में ही जीता और मरता है।।
अंत मे वो ही मनु दुनिया में बड़ा बनता है।
जो चापलूसों की फूंक से कभी न चलता है।।