अजनबी मैं और तुम
अजनबी मैं और तुम


काश ! मैं और तुम अजनबी होते
या फिर मैं और तुम अजनबी की तरह रहते
या आज की तरह लिव इन रिलेशनशिप में रहते
ना तुम्हें क्या और क्यों का उत्तर देना होता
और ना ही मैं क्या और क्यों और कैसे कहती
ना ही फोन पर पूछती कि कहाँ हो? कैसे हो ?
ना दिन भर की व्यस्तता व चर्या पूछती
ना ही रात को देर से आने का कारण पूछती
सब कुछ कितना सरल और सहज होता ना
जब हम अजनबी की तरह रहते
ना आकांक्षा ना अपेक्षा ना उपेक्षा का द्वंद्व सहना होता
ना नित्य की नोकझोंक ना रोजमर्रा का झंझट
ना गृहस्थी का संचालन ना ही उसका वहन
ना ही बच्चों की जिम्मेदारी ना ही लालन-पालन
ना शिक्षा का बोझ और ना ही संस्कारों का रोपण
ना विचारों का मेल ना ही हृदय की तारम्भता
और ना ही एक दूसरे के साथ लयबद्धता
बस होती सिर्फ स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, उन्मुक्तता
सबकुछ सरल और सहज होता ना तुम्हारे लिए
जब हम तुम अजनबी की तरह रहते
हाँ बस, नहीं होता तो बस प्यार ,समर्पण, जुड़ाव
ना ही एक दूसरे की चाहत पसंद और नापसंद
का ध्यान
ना ही एक दूसरे की इच्छाओं की प्राथमिकता
ना ही एक दूसरे पर अधिकार
और ना ही रिश्तों की मर्यादा गरिमा का सम्मान
और ना ही रिश्तों को बांधने का प्रयास
तो क्या ???
आज के इस आधुनिक युग में जरूरत ही क्या है
इन सब अलंकारों की एक दूसरे के साथ संबंधों की
आजकल तो सिर्फ गिव एंड टेक का जमाना है
त्याग, समर्पण, प्यार, एक दूसरे के लिए जीना
और एक दूसरे का होना सिर्फ किताबी शब्द है
अब एक दूसरे पर अधिकार बोझ हो चला है
तभी तो आजकल लिव इन रिलेशनशिप
का चलन हो चला है
जब चाहा साथ रहे जब चाहा अलग रहे
आज मुझे मेरी क्या और क्यों का उत्तर मिल गया है
आज हृदय यह मान चुका है कि सब अब आधुनिक हो चला है।