पसंद और प्रेम
पसंद और प्रेम
पसंद करना,
जैसे तितली का फूलों पर मंडराना,
क्षण भर का सुख,
मौसम बदला, तितली उड़ गयी।
प्रेम करना,
जैसे जड़ें मिट्टी में गहरे उतरना,
वक़्त की मार सहकर भी,
वृक्ष का अटल खड़े रहना।
पसंद,
एक गीत जो गुनगुनाया,
फिर भुला दिया।
प्रेम,
वो धुन जो रग-रग में समाई,
हर सांस में बजती रहे।
पसंद में बदलाव है,
जैसे रंगों का इंद्रधनुष,
हर रंग लुभाता है,
पर स्थायी नहीं।
प्रेम,
एक रंग जो आत्मा पर चढ़ा,
कभी न उतरे,
धूप हो या छाँव,
साथ निभाए।
जिससे प्रेम होता है,
उसकी खामियां भी,
प्यारी लगने लगती हैं,
उसे पढ़ना क्या,
अब तो जीना है,
हर धड़कन में वो,
हर सांस में वो।
मैं और तू,
दोनों मिट गए,
बस हम रह गए,
एक अटूट बंधन।
प्रेम. . .
बस हो जाता है,
बिना किसी कारण,
बिना किसी शर्त के,
अनायास, अनन्त।
प्रेम,
बिना कारण,
बिना किसी शर्त के,
बस हो जाता है,
जैसे नदी का सागर से मिलना।
बिना बोले,
सब कह देना,
बिना छुए,
सब महसूस करना।
प्रेम,
एक यात्रा है,
अनंत की ओर,
जहाँ सिर्फ़ सुकून है,
और एक दूसरे में खो जाने की चाह।
पसंद,
एक राह है,
जो बदलती रहती है,
प्रेम,
वो मंजिल है,
जहाँ आत्मा ठहर जाती है।

