मैं क्या जानू मेरी किसमें भलाई
मैं क्या जानू मेरी किसमें भलाई
अंधेरे में टटोलती एक दीवानी,
दिशाहीन, पथिक अनजान।
मेरी समझ तो सीमित,
जैसे बूंद सागर में।
तू ही तो है वह नाविक,
जो लगाए भवसागर पार।
तू ही तो है वह डोर,
जिससे बंधी है मेरी पतंग।
तू ही जाने,
किस रंग में रंगना है जीवन,
किस राह पे है मंजिल मेरी,
किस मोड़ पे छुपा है मेरा कल।
मैं तो बस एक खाली बर्तन,
भर दे प्रेम रस से,
या बिखेर दे धूल में,
तेरी मर्जी।
तू ही जाने मेरी श्री राधे,
तू ही जाने,
मेरी किसमें भलाई।
क्या समझूं मैं जगत का मान?
तू ही तो सर्वज्ञ, तू ही तो प्राण,
मैं क्या जानू मेरी श्री राधे।
मेरी किसमें भलाई,
किसमें मेरी सच्चाई,
तू ही तो जाने, तू ही तो बताए,
मैं तो बस तेरी छाया,
तू ही मेरी काया।
तू ही तो मेरी राधे,
तू ही मेरी राधे।
