पिता का मौन
पिता का मौन
दीवारों सा खड़ा,
अक्सर चुप, शांत, गंभीर,
पर उस चुप्पी में,
छिपी है एक कहानी,
अनुभवों की, त्याग की, जिम्मेदारी की।
क्या तुमने कभी सुना है,
उस मौन की धड़कन?
वह कहता है,
संभल कर चलो, ठोकरें लगेंगी,
गिरकर उठना भी सिखाता है।
पिता का मौन,
एक कवच है,
जो बचाता है,
हर बुरे ख्याल से,
हर टूटे हुए सपने से,
सुनो,
उस मौन को ध्यान से,
उसमें है मार्गदर्शन,
उसमें है स्नेह,
उसमें है दुनिया जीतने का साहस,
फिर कोई भी
क्या बिगाड़ लेगा तुम्हारा?
कुछ भी नहीं।
