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GAUTAM "रवि"

Drama Tragedy Classics

4.5  

GAUTAM "रवि"

Drama Tragedy Classics

मैं लौट के अब ना आऊँगा

मैं लौट के अब ना आऊँगा

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513


जब गुमसुम खोयी खोयी हो,

जब बैठी हो तन्हाई में,

आ जाये ग़र मेरी याद, 

हौले से बस तुम हंस देना,


अपनी उस लाचारी को,

उस बेबस सी खामोशी को,

आँखों में अपनी छुपा लेना,

फ़िर फैला कर बाहें तुम,

मुझे अपने पास बुला लेना,

कुछ सुन लेना मेरी भी,

कुछ अपना हाल सुना देना,


जब कुछ अच्छा ना लगे तुम्हें, 

जब खुद से ही रुसवाई हो,

जब हर पल तन्हा तन्हा हो,

जब भीड़ में भी तन्हाई हो,


जब वादे याद पुराने आयें, 

जब मुझे देखने को जी चाहे,

जब उठे हों दिल में सवाल कई,

जब रहे ना अपना ख्याल कोई,


तब सिसकी भर कर फ़िर तुम भी,

बंद कर लेना अपनी पलकों को,

फ़िर कितना भी अंधेरा हो,

लेकिन उन अँधेरी राहों में,

तुम साथ मेरा ही पाओगी,

अपने कंपकंपाते हाथों में,

तुम हाथ मेरा ही पाओगी।


हो कितनी भी तेज तपिश कहीं,

कितने ही शीतल झरने हों,

जब भर जाये ग़र मुझसे जी,

 तंग करे हर बात मेरी,

जब प्यार नहीं मज़बूरी हो,

जब और कोई मुझसे जरूरी हो,


खुद के जो अधूरे से सपने हों, 

वादे और जो पूरे करने हों, 

कर लेना वो सब पूरे तुम, 

मत घबराना तुम सोच मुझे, 

तुम किसी और की हो जाना, 

भूल मुझे अब तुम जाना, 


ना याद तुम्हें अब आऊंगा, 

वो बात अलग है ये लेकिन,

मैं भूल तुम्हें ना पाऊँगा, 

तुम करना भले इंतजार मेरा, 

मैं लौट के अब ना आऊंगा,


हाँ, अब भी मैं रह जाऊँगा, 

ख्वाबों में बस मैं आऊँगा,

उस नुक्कड़ पर, उस मोड़ पर, 

तुम्हें देख देख मुस्काऊंगा,

पर जो तुम मुझको ढूंढोगी,

ना दिखेगा मेरा अक्स कोई,

पर जब भी नजर तुम डालोगी,

दिखेगा मुझसा हर शख्स तुम्हें।


अब कितने भी आँखों से नीर बहें,

जब ना सुध अपनी भी रहे तुम्हें,

फ़िर कितनी भी ख्वाहिश रहे भले,

बिन मेरे भले ना दिन ढले, 

मैं लौट के अब ना आऊँगा।


करती रहना अब तुम याद, 

उन भूली बिसरी बातों को,

जो फिर से जाग उठे हैं अब,

उन दबे हुए जज़्बातों को,

अब कितनी भी मज़बूरी हो,

मैं लौट के अब ना आऊँगा,

मैं लौट के अब ना आऊँगा। 


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