किसी रोज़ बदलाव होगा
किसी रोज़ बदलाव होगा
किसी रोज मुझमें भी एक बदलाव होगा।
मुझसे जलने वालों के दिल में घाव होगा।।
बड़े बे-रहम वो मुझ पर जो सितम ढाये हैं।
दूर वो दिन नहीं उनमें जब अलगाव होगा।।
गाँव की गलियाँ छोड़ यादें ले के निकले हैं।
भीड़ के शहर में कहीं मेरा भी पड़ाव होगा।।
अभी तो वीराने दिखते हैं चारों तरफ मेरे।
कड़े धूप के दिन गुजरेंगे सर पे छाँव होगा।।
सिर्फ़ तसल्लियों से जी नहीं भरता "रहमत"।
ख़ुशी तब होगी जब ख़ुद का मकान होगा।।
ज़ाम भी छलकेंगे सुबह-शाम मेरे बस्ती में।
सुबह अख़बार में इश्तिहार मेरे नाम होगा।।