पंछी एक उड़ चला
पंछी एक उड़ चला
पिंजरा आज छोड़कर
पंछी एक उड़ चला।
गांव की गली को छोड़
शहर निकल आया था
संघर्ष करके ज़िंदगी से
शान-ओ शौकत पाया था
धर्म, कर्म खूब किया
नाम भी कमाया था
उसके जाने से है आज
उसका घर बिखर चला,
पिंजरा आज छोड़कर
पंछी एक उड़ चला।
मोह-माया त्याग कर
न चाह इस जहान की
बोलता था मीठे शब्द
करता बातें ज्ञान की
कोई न अमर यहाँ
सभी को मिलना मौत है
ज़िंदगी उम्मीद थी पर
ज़िंदगी से मुड़ चला,
पिंजरा आज छोड़कर
पंछी एक उड़ चला।
पत्नी गिरी फ़र्श पर
कुछ लोग हैं उठा रहे
रो रहे हैं भाई, बंधु,
शोक सब मना रहे
गांव की गली-गली भी
सांय-सांय कर रहे
सारे खेल देखने को
रूह दूर है खड़ा,
पिंजरा आज छोड़कर
पंछी एक उड़ चला।