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शेख रहमत अली "बस्तवी"

Fantasy Children

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शेख रहमत अली "बस्तवी"

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दिल परिंदा है

दिल परिंदा है

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ये दिल परिंदा है, 

नील गगन में पंख फैलाये 

दूर तलक उड़ना चाहता है। 


धरती और आकाश के

दरमियाँ में ये जो फ़ासला है, 

उसे इन पंखों से नापना चाहता है। 


ख़ुशी व ग़म ज़िंदगी के दो पहलू हैं, 

शामिल होकर ख़ुशी-ग़मों को

मिल आपस में बांटना चाहता है। 


एक ऊँची उड़ान भर कर, 

दूर-दराज़ बसे किसी महबूबा से

"रहमत" मिलना चाहता है। 


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