कहानी कौन जाने
कहानी कौन जाने
मोहब्बत, इश्क़
और उसकी रवानी कौन जाने।
कहाँ तक सच है
यह मेरी कहानी कौन जाने।।
किसी दिन मैं अगर कुछ
काम से बाहर चला जाता,
मेरे आने की खुशियों में
वो सारी रात जगती थी।
निहारा करती हर लम्हा
लिये तस्वीर आँखों में,
मैं जब तक लौट न आऊं
वो मेरी राह तकती थी।
बयान-ऐ इश्क़
यह मेरी ज़ुबानी कौन जाने।
कहाँ तक सच है
यह मेरी कहानी कौन जाने।।
किसी दिन गुफ़्तगू की
उसने हमसे दूर जाने की,
रहेंगे अलहदा कब तक
अब बारी घर बसाने की। <
/p>
मगर अफ़सोस न करना
मोहब्बत पाक़ है "रहमत",
ग़लत न सोंच ले कोई
मुझे है डर ज़माने की।
वफ़ा के सच्चे दिल
हम ख़ानदानी कौन जाने।
कहाँ तक सच है
यह मेरी कहानी कौन जाने।।
हुआ अफसोरदा अब मैं
करूं शिकवे-गिले किससे,
हक़ीकत बात यह भी है
कटेगी ज़िंदगी कैसे।
लिये फिरता कहाँ उसको
उसे थी चाह महलों की,
पला हूँ मुफ़लिसी में मैं
दिखाऊं ख़्वाब भी कैसे।
जिया किसके लिए
यह जिंदगानी कौन जाने।
कहाँ तक सच है
यह मेरी कहानी कौन जाने।।