मनुष्यता
मनुष्यता
मनुष्यता धर्म ही तो सबकुछ है
मनुष्यता से बढकर कुछ नहीं है।
चार दिन के ज़िंदगी में प्रेम ही सर्वधर्म है,
किसी के वास्ते दिल में मदद की मंशा हो।
जीवन में तब हर पल ही खुशी है,
यहां धरा चमकते सितारों सा प्रतीत है।
मन्दिर_मस्जिद तो जाना ही चाहिए,
परन्तु मनुष्यता भूलना नहीं चाहिए।
किरदार ही तो जीवंत रहते हैं,
मरने के बाद भी लोगों के दिल में रहते हैं।
ज्यों मनुष्यता अपनायेंगें,
त्यों ही कर्म अच्छी ही होंगें।
हँसकर कर ही जीवन बिताना,
औरों को भी है हंसाना।
खाली हाथ आए थे,
खाली ही चले जाना है।
मनुष्यता को अपनाकर,
जीवन को सार्थक कर जाना है।