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Sandip Kumar Singh

Fantasy

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Sandip Kumar Singh

Fantasy

जिएं महोत्सव जैसे

जिएं महोत्सव जैसे

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जिन्दगी को महोत्सव की तरह जीना है,

हर गम को खुशियों से निकाल देना है।


बड़ी ही नियामत से यह जीवन मिला है,

पल _पल इसमें हसी की रंग भरना ही है।


देखो वसुंधरा मुस्कुरा रही है,

अनगिनत जीव भी बेफिक्र हैं।


वाह जी वाह कुदरत का कमाल,

एक से बढ़कर एक हैं यहां मिशाल।


बागवान सी सजी हुई है धरा,

फिर मनुज क्यों कर होते हो उदास?


देखो सीखो प्रकृति से खुशियां ले लो,

अपने _अपने जीवन को भी रंगीन कर लो।


आसमान में देखें क्या गज़ब सुंदरता है,

रात भी चांदनी में नयाब सी लगती है।


आओ मिल कर उत्सव मनाएं,

एक _दूजे में खुशियों को बांट लें।


भागमभाग में कहीं खो न जाय अपना,

अपनों के संग आओ त्योहार अब कर लें।


चेहरे पर हो सादगी सीरत में सच्चाई,

बहुत खूब है यारों खुदा की भी खुदाई।


इतना भी मत खो जाएं कामों में,

की अपना भी ख्याल न रख पाएं।


कभी _कभी उत्सव भी मनाएं जी भर कर,

ज़िंदगी को स्वतंत्र रुप से खुली हवा लेने दें।


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