क़िताब ही ज़िंदगी
क़िताब ही ज़िंदगी
काश ज़िंदगी एक किताब होती,
पढ़ने वाले सभी शौख से पढ़ते।
ज़िंदगी में विभिन्न रंगों के रचनाएं होती,
और अलग_अलग रचनाकार भी होते।
फिर लोग ज़िंदगी का मोल भी लगाते,
क़िताब दुकान से खरीदकर घर ले जाते।
अलग_अलग विषयों की अध्याय होती,
उस से संबंधित प्रश्न भी होते।
कभी लोग कविता की तरह पढ़ते,
तो कभी लोग कहानी की तरह पढ़ते।
रंग _बिरंग के विशेषणों से अलंकृत करते,
ज़िंदगी रूपी क़िताब पढ़कर बहुत आगे बढ़ते।
विभिन्न रंगों वाली यह ज़िंदगी,
पन्नों में ही सिमट कर रह जाती।
और इसकी खुद की मौत नहीं होती,
किसी बेरहम के द्वारा ही नाश की जाती।
ज़िंदगी को क़िताब समझ पढ़ लिया जाए,
क़िताब को ज़िंदगी समझ पढ़ लिया जाए।
