दीवारें बोलती है...
दीवारें बोलती है...
सुना है, दीवारें भी सुना करती हैं
दीवारों के भी कान होते हैं
बड़े-बड़े सुनसान आलीशान
महलनुमा बंगलों में तो कभी-कभी,
इन्हें गुनगुनाते,हँसते-हँसाते,
चहचहाते,चुलबुलाते महसूस किया है।
लेकिन इंसानों की आहट पाते ही
ख़ामोश पड़ जाती हैं ये दीवारें,
ऊँची-ऊँची,ठोस, बर्फीली पर्वत-श्रृंखलाओं में
बैठे किसी शांत मौनी-बाबा की सी।
चुपचाप, ख़ामोशी से किसी चिर-साधना में
विलीन रहा करती हैं, ये दीवारें।
उजड़े-पुराने किलों की चारदीवारियों में
तो अपनी पुरानी यादों में,
सुगबुगाती,आहें भर-भर कर,
उखड़ी-उखड़ी साँसों में
जिया करती हैं, ये दीवारें।
कभी गुफ़्तगू करती हैं,
कभी छेड़तीं हैं एक दूसरे को व्यंग्य से,
कभी सहम सी जाती हैं
कुछ भयानक हादसों की परछाइयों से।
बंद कमरों के आगोश में बहुत
कुछ सहा है,भोगा है, देखा भी है,
पर ख़ामोशी की ज़ुबाँ ओढ़ कर,
किसी से कुछ कहे बगैर ही,
सुख- दुःख के अनगिनत राज़
दिल में संजो कर रखतीं हैं, ये दीवारें।
गवाह हैं ये कुछ भयानक हादसों की,
पर कुछ राज़ भी हैं जो,
इन ख़ामोश दीवारों के लम्बे
सायों में उलझ कर रह गयें हैं।
काश! ये मूक दीवारें,
हम इंसानों के बीच भी कुछ बोल पातीं
काले धुऐं से गहराये,अनेकों
सुनसान राज़ ख़ामोश है इनके आगोश में,
न जाने कितने सबूतों को अपनी
ख़ामोश ज़ुबाँ के आगोश में लपेटे बैठी हैं।
केवल एक प्रतीक्षा में कि
कोई मसीहा तो समझे इनकी भाषा,
शायद ऐसी आस रखती हैं ये दीवारें।
हाँ, ऐसी ही आस रखती हैं ये दीवारें।
अगर कोई पढ़ पाता
इनकी भाषा तो समझ पाता
कि वाकई में ये बोलती हैं,
हाँ ये दीवारें बोलती हैं।
देश में हो रहे हर भ्रष्टाचार
और घोटालों के राज़ खोलतीं हैं।
जी हाँ ! दीवारें बोलती हैं,
जी हाँ ! दीवारें बोलती हैं।
दहेज़ के अभाव में जलती हुई
बेटियों की चीखों के राज़ खोलती हैं।
और तो और, नौकरशाहों, भ्रष्ट अफसरों
और नेताओं की भी पोल खोलती हैं।
न्यायालयों में बिकने वाले अन्याय के राज़ खोलती हैं।
जी हाँ दीवारें बोलती हैं, हाँ ये दीवारें बोलती हैं।
कौन कहता है कि ये दीवारें नहीं बोलतीं ?
ये दीवारें ही तो हैं, जो रेडियो में,
टी.वी. पर, समाचार पत्रों में और सोशल मीडिया में,
सफ़ेद कपड़ों में छिपे सफ़ेदपोश
अपराधियों के राज़ खोलती हैं।
और भी न जाने क्या- क्या
शब्दों की भाषा में तौलती हैं।
जी हाँ ! दीवारें बोलतीं हैं,
दीवारें बोलती हैं और इसी तरह बोलती रहेंगी,
बस ज़रुरत है तो समझने वालों की,
इनकी मौन भाषा पढ़ने वालों की।
