नारी का अस्तित्व
नारी का अस्तित्व
कब तक रावण के दोष का दंड,
ये दुनिया,वैदेही को देगी
कब तक बिना अपराध के भी
सीता की अगन परीक्षा होगी
श्री राम को जब बनवास हुआ
बिन कहे सिया ने साथ दिया
मुश्किल में थी जब जनक सुता
रघुनाथ ने न बढ़कर हाथ दिया
कैसा है - यह राम राज्य
कैसी यह आदर्श वादिता है
एक रानी के चरित्र, का निर्णय
करती अज्ञानी जनता है
माना कि एक ही पत्नी का
था तुमने दृढ संकल्प किया
पर क्यों जग की कुत्सित सोच के कारण
निर्वासित सिय को करा दिया
आदर्श पुत्र, उत्तम राजा
सहृदय मित्र, आदर्श भ्राता
मर्यादा पुरूषोत्तम, काश कि तुम
आदर्श पति भी बन जाते,
अत्याचार जो नारी, पर होते हैं
शायद वो, कुछ कम हो जाते
मत्स्य आँख को वेध पार्थ,
तुमने था जिसका वरण किया
वह थी तुम्हारी परिणीता
इनाम क्यों तुमने समझ लिया
जन्म नीड़ छोड़ने में, द्रौपदी
न तनिक सकुचाई थी
गाण्डिवी पर उसे भरोसा था
तेरी परछाई बन आई थी
तूने उसके विश्वास को ,
झण भर में कैसे तोड़ दिया
दिल के उसके टुकड़े कर
भाइयों के साथ, क्यों बांट लिया
अन्जाने हुई माँ की आज्ञा
क्या नारी सम्मान से बढ़कर थी
उस स्त्री का कुछ मोल नही
जो केवल तेरे भरोसे पर
आई अपना सब तजकर थी
सुता समाना से माँ कुन्ती,
कैसे इतना अन्याय किया
जो पुत्र वधु बनकर, आई
पांचाली उसको बना दिया।
कुरु-सभा में हुए अपराध की तो
गांधारी भी एक दोषी है
पुत्रों को नहीं था सिखलाया
इज्जत नारी की कैसे, होती है
धर्मराज, बोलो तो जरा
कैसा ये धर्म का मान किया
ब्याहिता पत्नी को बीच सभा
जुए के दावं पर, लगा दिया
रुपया-पैसा थी, क्या कोई
क्या वह जायदाद, तुम्हारी थी
दिल दिमाग सहित इन्सान थी वह
इज्जत.. उसको भी प्यारी थी
इतिहास कभी कुछ तो बोलो
मेरे प्रश्नों को सुलझाओ
नारी के जो भी दोषी हैं
आरोप सभी पर, ठहराओ।