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Manisha Kumar

Tragedy

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Manisha Kumar

Tragedy

लम्हे

लम्हे

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चुराये थे कुछेक लम्हे 

फुरसत में खर्च करने को,

पर रखा था जहां संजोकर 

वह तो बटुआ ही फटा था। 

बढ़ती रहीं जिम्मेदारी

दिन बीतते रहे,

और यूंही चुरा चुराकर 

लम्हें हम रखते रहे। 

फुरसत की आस में ही 

ये उम्र गुजरती रही,

खोजते खोजते खुशियां 

बस जिन्दगी सिमटती रही 

इकदिन मिली जब फुरसत 

वो लम्हे फिर याद आये

सोचा कि छोड़ें जिम्मेदारी 

वो लम्हे अब खर्च आयें,

खुद को करें खुद खुश अब

ख्वाब अपने भी कुछ सजायें। 

अरमानों से खोला बटुआ 

पर खाली वो पड़ा था,

अनमोल मेरा खजाना 

जाने कैसे रीत गया था। 

बूंद बूंद करके था जिसको

कभी बचाया,

जाने किस मोड़ पर जीवन के

हमने उसे गवांया। 


  


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