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Manisha Kumar

Abstract Comedy

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Manisha Kumar

Abstract Comedy

लाईक की चाहत

लाईक की चाहत

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जिसे भी देखो चमक दमक के

पीछे दौड़ लगाता है। 

शानौ शौकत के आगे जाने क्यों,

हर कोई शीश नवाता है। 


साम दाम से दंड भेद से

जैसे भी किसी ने नाम कमाया 

सही गलत की बिन परवाह के

दुनिया ने उसे पलकों पे बैठाया। 


देख जमाने की यह फितरत

सूरज दादा का मन भरमाया 

एक लाईक की खातिर रवि ने

अपना सारा जोर लगाया। 


बिखरा चमचम चमकती किरणें 

भानू ने अपना वैभव दिखलाया 

तड़क-भड़क कर चमक-दमक कर

अपनी ताकत का दम दिखलाया।

 

लिये दमकती कलम किरणों की  

खुद आटोग्राफ देने को आया

पर देखकर तेज रवि का सबने

खुद को छत के नीचे छिपाया।  


देखा लोगों को खुद से बचते 

अंशुमाली का सर चकराया 

खुजलाया जब बहुत मगज़ को

तब बस इतना समझ में आया 

झूठ दिखावा चाहता जग यह

और सच से कन्नी काटता आया। 


  


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