बचपन की अठखेली
बचपन की अठखेली
पड़ी फुहारें सावन की जब
दिल मेरा भरमाया
जा बैठा था कहीं दुबककर
वह बचपन फिर याद आया
याद आया माँ से नजर बचाकर
बारिश में भीगने जाना
देख फुदकता मेंढक को
संग उसके कूद लगाना
काॅपी से कभी पेज फाड़कर
कागज़ की नाव बनाना
बहते बरसाती पानी में उसे
दूर तलक ले जाना
भरा सड़क के गड्ढों का
पानी भी ललचाता था
कूद के उसको फैलाने में
बड़ा मजा आता था
बादल और सूरज की जब
होती थी आंख-मिचौली
इन्द्रधनुष को देख नाचती
हम बच्चों की टोली
क्या ही खूब थे दिन बचपन के
ना फिक्र, ना कोई चिन्ता थी
बन जाते थे गीली मिट्टी से घर
पूरी धरती अपनी थाती थी।