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Manisha Kumar

Abstract Others

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Manisha Kumar

Abstract Others

बगीचा

बगीचा

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मेरे घर के ठीक सामने
 एक बगीचा है।
कुदरत ने खुद बड़े जतन से
उसको सींचा है।
ऊंचे हरे भरे वृक्षों की यूं
दीवार बनाई है,
मानो तपनकर को तो यंहा
प्रवेश मनाही है।
गिलहरी और खगों ने इनपर
किया बसेरा है,
इनकी अठखेली से यादों का
 खुला दरीचा है।
मेरे घर के ठीक सामने
 एक बगीचा है।

 बरगद,पीपल,नीम को छूकर
पवन जो बहती है,
तन मन की हर एक व्याधि को
यह हर लेती है।
बौराए आमों पर कोयल ने
कूक लगाई है,
इसकी मीठी बोली ने बरबस
मन को खींचा है।
मेरे घर के ठीक सामने
एक बगीचा है।

 रंग बिरगें फूलों की क्या
छटा निराली है,
मनमोहक खुशबू से महके
हर फुलवारी है।
दूब मखमली बिछी है यूं कि
हरा गलीचा है।
मेरे घर के ठीक सामने
एक बगीचा है।

 एक तरफ बच्चों के झूले
और स्लाईड हैं,
गये तराशे बूटों के नीचे
बैंच बिछाई हैं।
माली की मेहनत से निखरा इसका
रुप समूचा है।
मेरे घर के ठीक सामने
 एक बगीचा है।


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