डरावना सपना
डरावना सपना
बात है ये उस रात की
रात में होती बरसात की।
जब माँ ने आकर मुझे उठाया
बाहर जाने की बात बताया।।
बोले मेरी प्यारी बिटिया
जाना है बहुत जरूरी
पापा के दोस्त का हुआ प्रमोशन
हम जा रहें देने उन्हें बधाई।।
तुम कोई चिन्ता न करना,
जाकर तुम सो जाना,
जब हम आएं तब ही उठना
अब तुम कर लो दरवाजा बंद।।
जब पापा और मम्मी चले गये
तो मैं अपने कमरे में जाने लगी
एक जोर का बादल गाजा
बिजली चमकी तड़-तड़-तड़।।
खिड़की करती जोर-जोर से चरर-चरर
और अपने आप ही हिलती-डुलती
बड़ी तेज से हवा चल रही जैसे करती सरर-सरर
खिड़की से बरसात की बूँदें आती घर के अंदर।।
अजीबोगरीब आवाजों से मुझको लगता डर
ऊपर के कमरे में भी जैसे कुछ हलचल सी होती
डरते-डरते, धीरे-धीरे पहुँची सीढ़ियाँ चढ़कर
और धीरे से कमरे का दरवाजे खोला धकेलकर। ।
मुँह से मेरे आवाज न निकली पलकें भी न झपकीं
सोफे से दो बाहें निकली और मेरी तरफ वो लपकीं
उनसे बचने की खातिर मुझको कुछ भी समझ न आया
सोचने का वक्त नहीं था मैंने खुद को आलमारी में छिपाया।।
घुप अंधेरे में आलमारी से झांक रहीं थीं पीली-पीली आँखें
घबराहट में डर के मारे जैसे रुक गईं मेरी सांसें
बड़े भयानक इस मंजर कैसे खुद को बचाऊँ
खतरनाक सी इन चीजों से कैसे बाहर आऊँ।।
सर्दी वाला कोट मेरा कमरे में दौड़ लगाए
मोटर के पहियों के जैसे घड़ी की सुई दौड़ लगाए
जाने क्यों इस कमरे की हर चीज है मुझे डराए
माँ मेरी अब मैं क्या करूँ कुछ भी समझ न आए। ।
कमरे में मैं भाग रही थी खुद को बचते-बचाते
लेकिन फिर भी वो सब थे मेरी ओर को आते
डर के मारे आँखें भींचें मैं माँ-माँ-माँ चिल्लाई
लगता जैसे हो गई रोशनी, माँ की आवाज दी सुनाई।।
आँखें खोल मैंने जब देखा माँ दरवाजे पर खड़ी थी
मुझको जैसे चैन आया और मैं उनके आँचल में छुप गई
बड़ प्यार से माँ ने फिर मेरा सिर सहलाया
देख रही थी मैं सपना उन्होंने फिर समझाया।।
