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Krishna Bansal

Inspirational Thriller

4  

Krishna Bansal

Inspirational Thriller

वह घर

वह घर

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बहुत याद आता है 

बचपन का वह दो कमरों का 

छोटा सा, प्यारा सा घर 

मां घरेलू कार्यों में मग्न 

पिता अपनी दुकान में व्यस्त 

हम बच्चे खेल, पढ़ाई, 

लड़ाई- झगड़े में मस्त। 


पूरी शाम संगी साथियों के साथ

कंचे व पिट्ठू खेलने 

रस्सी कूदने,

साइकिल के पहिए को डंडे से 

पूरी गली में घुमाना 

छुपा छिपी खेलना  

बहुत ज़्यादा याद आता है 

बचपन का वह छोटा सा घर।


खाने के बाद बैठना 

दिए और लालटेन की रोशनी में

'होम टास्क' के लिए 

आध-पौन घण्टे में काम खत्म। 


'होम टास्क' का इतना तनाव 

कहां था जितना आज है।


फिर छत पर जाकर सोना 

मच्छर न काटे

प्याज काट-काट कर 

बान से बुनी चारपाई के 

चारों किनारों पर रखना 

न कछुआ छाप होती थी 

न ऑल आऊट।

घर के मुखिया का 

मच्छरदानी में सोना 

हम सब का उनसे ईर्ष्या करना 

मन ही मन भुनभुनाना। 


आकाश के तारे गिनना 

चांद की 

सुंदरता को निहारना

दिन भर की घटनाओं का 

सब के साथ साझा करना 

बहुत ज़्यादा याद आता है 

बचपन का वो छोटा सा घर।


बरसात के दिनों में 

आधी रात के समय 

बारिश का आना 

चारपाइयां नीचे उतारना 

अपना ठिकाना ढूंढना

मच्छरों द्वारा काटा जाना 

शेष रात नींद न आना 

अगले दिन क्लास में ऊंघना

टीचर की डांट पड़ना 

बहुत याद आता है 

बचपन का वह छोटा सा घर।


पिताजी का 

दुकान से लौटना 

मां के इशारे पर हम सब का

कोनों में दुबकना 

खाने के बाद 

पिताजी के बुलावे की 

प्रतीक्षा करना 

कौन सी मिठाई लाए हैं 

उत्सुक होना 

रसगुल्ले, गुलाबजामुन,

जलेबी प्रतिदिन एक मिठाई।


मिठाई के उपरांत 

शहर की, अखबार की, 

रिश्तेदारों की 

सब खट्टी मीठी खबरें सुनाना

बहुत याद आता है 

बचपन का वह छोटा सा घर।


तीज त्योहार का पूरे उत्साह व जोश से मनाना 

भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक राखी का त्योहार 

बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व दशहरा 

राम का स्वागत करती दीवाली

या फिर सर्दी का उत्कर्ष मनाती लोहड़ी 

मेले में जाना 

तीज पर झूले झूलना 

हर होली पर 

नए कपड़ों का मिलना 

बहुत ज़्यादा याद आता है 

बचपन का वह छोटा सा घर।


साइकिल नहीं, मोटर बाइक नहीं कार नहीं 

लोकल जाना हो 

साधन थे 

रिक्शा, टांगा या फिर पैदल

शहर से बाहर जाना हो

मोटरबस या रेलगाड़ी। 

न टीवी, न कंप्यूटर,

मोबाइल आईफोन कुछ नहीं

हां, सिनेमा हॉल ज़रूर थे 

निमाही छमाही

कभी कोई मूवी देख ली 

सारी क्लास में  

ढिंढोरा पीटना 

बहुत ही याद आता है 

बचपन का वह छोटा सा घर।


न बचपन लौट सकता है

न वे बीते दिन 

हां, अतीत की यादों में खो कर

जीवन्त हो उठते हैं ये पल 

सच में बहुत याद आते हैं  

वे पल 

वो बचपन का छोटा सा 

प्यारा सा घर।



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