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Sachin Gupta

Abstract Tragedy Thriller

4  

Sachin Gupta

Abstract Tragedy Thriller

धर्मांधता

धर्मांधता

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राहु बैठा ग्रसने को ,

शनि चौखट निहारे है 

तड़प रहा वो 

घर के अंदर आने को है 

राशि पर लगा दोष भारी है।

 

अंधे को अंधा भाए 

काना को भाए काना 

पर ये कैसा भ्रम है 

दृष्टि वाले को दृष्टिहीन बनाए है।

 

कहने वाले कहते है धर्म 

पर धर्म के आगे , चलता है धंधा 

जो समझे खेल इसका 

उसके लिए है धर्मांधता।

 

कितना डूबूँ , अरे कितना ओर डुबाओगे 

मैंने तो तेरी पोथी पढ़ ली है 

औरों को कैसे नहीं पढ़ाऊँगा 

ज्ञान नहीं है अंधा 

चीख – चीख कर सबको बताऊँगा।

 

पर धर्म के अंधों को कैसे 

ओ नियति मैं समझाऊँगा 

सारा वक्त खेल है तेरा 

मानव करता नृत्य नंगा है।

 

आँखें है तो देख लो 

शूद्र को भी थोड़ा पढ़ लो 

इतिहास गवाह है 

वर्ण ने नाम चला था कभी धंधा।

 

अरे सच को कितनी ओर दोगे फांसी 

मैंने मानव रक्त पहचान लिया 

जिस पर नहीं था कोई 

जात का , वर्ण का और धर्म का ,

 कोई भी नक्शा।

 

जब मौत आई थी लेने 

मैंने उसको कुछ कहते देखा 

चला गया वो वापस 

रक्त दिया था किसी रक्तवीर ने 

मुझे लगे थे बचाने 

डॉक्टरों की टीम ने 

मैंने पूछा जब धर्म उनका 

कहा हँस कर कहा , बचाना है इंसानों को |

 

तेरी कुंडली अभी ठीक नहीं 

लगा हुआ साढ़ेसाती है 

पहले दो पाँच सौ एक रुपया 

दान में दो तांबे का लोटा 

तेरा दोष मिटाऊँगा। 

 

अरे कब तुम दोगे धोखा 

तेरे संतान पर तेरा नहीं रहा अंकुश कोई 

राहु को क्या हटाओगे 

पेट बना तेरा जैसे हो कोई मटका 

और कितना धर्म के नाम खाओगे ?

 

वक्त ने खेल पहचान लिया है 

 सच्चा धर्म सब ने जान लिया है 

अब बनेगा ना कोई धर्म के आगे अंधा।

 

खेल - खेल में तुमने खूब है खेला 

जात – पात के डंडे 

रंग – भेद के भाले 

धर्म के नाम पर दंगे 

भोले – भले लोगों ने ये सब 

जान लिया है।

 

अब न गलेगी तेरी कोई भी दाल 

हरा – भगवा छोड़ 

खिचड़ी को सब ने अपना आहार मान लिया है 

 

बहुत हुई धर्म की नाच 

अब धर्मांधता को सबने पहचान लिया है 

बंद करो अब तुम अपनी दुकान।

 


 


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