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Sachin Gupta

Tragedy Inspirational

4  

Sachin Gupta

Tragedy Inspirational

अंधविश्वास

अंधविश्वास

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देखा जब धरती से अम्बर को ,

अम्बर में लाख सितारे थे

हँस – हँस कर जुगनू सा

मधुर – मधुर मुसकाते वो।


जब देखा अम्बर से धरती को

धरती पर बजते अंधविश्वास के नगाड़े थे

किस- किस को समझते हम

आसमान में जा सितारों संग

हमने खूब भी धूम मचाए थे।


वापस धरती पर फिर से आना

ये नादान दिल ना चाहे

वाह ! आसमान में क्या खूब नजारे थे।


घूम- घूम कर मैं थक ना पाया

करीब से देखा जब अपनी मिट्टी को

जी भर मुझको रोना आया

जात -पात में बटी ये दुनियाँ

अंधविश्वास का घर – घर बोल बाला था।


बकरे की कटती गर्दन

फिर भी मन्नत रहती अधूरी

गाँव – गाँव में खूब घूमा

शहरों की भी बात निराली थी

अंधविश्वास को पूजे सब

कन्या की कर दी जाती हत्या

नाम होता तंत्र साधना

और क्या – क्या बखान करूँ

मानव होकर मानव का मुर्दा खाए

तान छाती अघोरी कहलाये

डरने वाले डर जाते

फिर भी चरण उसके छूकर भी

शुद्ध कहलाये |


अब गंगा स्नान की जरूरत भी क्या

अघोरी के दर्शन जो कर आए

अब बात करूँ क्या मैं गंगा स्नान के

जिस गंगाजी में धोया पाप अपना

उसी गंगा जल को लोटे में भर

तू कैसे घर ले आया

वाह ! रे मानव तेरा खेल निराला है

अंधविश्वास में जकड़ी दुनियाँ 

पढ़े – लिखे और क्या अनपढ़

सब काटते चक्कर इसके 

अंधविश्वास का जो खेल निराला है

पढ़ाई – लिखाई सब बेकार यहाँ

अंधविश्वास का है बोल बाला।

 

ये सब होता देखा मैंने

वापस जब धरती पर मैं आया

सच में यारों मैं भी बच ना पाया

अंधविश्वास ने मुझको जकड़ा

मैं भी फिर कुछ कर ना पाया।


बच सको तो तुम बच लो

पाश है कुछ ऐसा इसका

अंधविश्वास के घेरे से

हो सके तो बच लो

पढ़ लिख कर नाम बनाओ

अंध विश्वासी लोगों से

दूरी अपनी बनाओ


बात बहुत तो करनी थी

पर अभी तुम इतना ही समझो

विश्वास बस इतना ही करना

जीवन जाये सुख से बीत |

 

अंधविश्वास का है जहर बुरा

हो सके तो तुम बच लो

मुझको जीतना कहना था कह डाला

मिर्ची नहीं थी पास मेरे

बस शब्दों से कसक निकाला है

क्योंकि आसमान में जाकर

सितारों संग समय बिताया हूँ 

तभी जो समझा हूँ अंधविश्वास को

फिर भी मैं इसके जाले से बच ना पाया

अंधविश्वास का माया है ऐसा

बच सको तो बच लो

अंधविश्वास से।

 


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