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Anshita Dubey

Drama Tragedy Others

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Anshita Dubey

Drama Tragedy Others

पाजेब

पाजेब

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जब पहनती थी तुम्हें चौथ तीज पर 

तब मन खनकता जो तुम चमकती थी

लेकर सात फेरे मन के गठबंधन में बांधा था

परम्पराओं की जंजीर नहीं बनाना था तुम्हें

सात जन्मों का वचन जो नहीं निभाया

रूढ़िवादी संस्कृति का निवाला अर्पित किया

विदाई कर घुंघरू सी दुल्हन 

का श्राद्ध कर दिया

रिवाजों में तुम्हारा भी अस्तित्व खो गया

कदमों में झंकार नहीं अब आंगन बीमार है

दहलीज़ लांघूँ कैसे

तुम्हारा भूगोल इतिहास बन गया

श्रृंगार रस वियोग रस बन थम गया।


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