उम्मीद नहीं
उम्मीद नहीं
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जिनसे उम्मीद नहीं थी बेवफाई की
वही बेवफा निकल गए ,
हर सांस दुआ देती थी जिनको
वही गद्दार निकल गए ।।
हर बात पर खार खाए बैठे हैं
हर चल पे घात लगाए बैठे हैं,
अब किसके भरोसा करे हम
जब अपने ही बेगाने निकल गए,
अपना समझ कर चाहा जिसे,
हर बार वही ठोकरें देते रहें,
दुश्मनों की दरकार कहां
जब अपने ही अपनो को लूटते रहे!!