ख्वाबों के बादल
ख्वाबों के बादल
तोड़े बहुत से ख्वाब अपने मैंने गैरों के लिए,
बहुत बदला है मैंने खुद को औरों के लिए,
हकीक़त देख कर अब तो मैं संभल जाऊँ,
बस अपने लिए भी तो थोड़ा बदल जाऊँ,
ख्वाबों के बादलों से अब मैं भी निकल आऊँ,
बन के मोम सा इन आँखों से मैं पिघल जाऊँ।
