"शनिवार"
"शनिवार"
अब कोई नहीं कहता क्या कर रहे हो,
अब कोई नहीं कहता क्या पढ़ रहे हो,
अब कोई नहीं कहता कैसा रहा दिन,
अब कोई नहीं कहता कैसे हो मेरे बिन,
अब कोई नहीं कहता क्या हो रहा है घर पर,
अब कोई नहीं कहता क्या सो रहे हो अब तक,
अब कोई नहीं कहता क्यूँ सर्दी में हो छत पर,
अब कोई नहीं कहता क्यूँ नेट बन्द था,
अब कोई नहीं कहता क्यूँ ऑनलाइन नहीं आये,
अब देर तक जगने वाला शनिवार नहीं आता,
सुबह उठकर अब पहला मैसेज तुम्हारा नहीं आता,
अब कोई नहीं पूछता कपड़े क्या पहने हैं,
अब कोई नहीं सुनता खाना क्या खाया,
अब 'रवि' को चाँद देखने को कोई नहीं कहता,
अब ना कोई साथ घूमता है,
और ना कोई तस्वीर चूमता है,
देर रात में सोने को अब कोई नहीं कहता,
अब तुम साथ नहीं हो,
खोया सा रहता हूँ मैं,
मुस्कुराने को अब कोई नहीं कहता।
