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Sarita Dikshit

Drama

4  

Sarita Dikshit

Drama

बारिश की रात

बारिश की रात

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763

ठंड से कांपती हुई लचकती टहनियाँ

पत्तों की झुरमुट में सिकुड़ते पक्षी भयभीत

अचानक से बढ़ना कड़ाके की ठंड

अतिशीघ्र रास्तों को, तय करते राहगीर

एहसास दिला रहे थे मौसम का मिज़ाज

अजीब थी वो सर्दी वाली बारिश की रात


छू रही थी उसे भी हाड़ कंपाने वाली बयारें

आश्रय की तलाश में अधनंगी सी वो काया

दोनों हाथों से खुद को समेटे बढ़ते हुए ,

आकर रुकी कुछ दूर सिमटा के अपनी साया

लाचार नज़रें उसकी कर रही थीं मुझसे कुछ बात 

अजीब थी वो सर्दी वाली बारिश की रात


गर्म चाय के प्यालों को लगा न पाये थे अधर

उसकी निगाहें जाने क्या घूर रही थीं इधर उधर

टिक गई थी नज़रें उसकी चाय के प्याले पर आकर 

खिल उठी थी भौहें उसकी आग की तपिश को पाकर

कुछ न साथ होकर भी ,कुछ तो था उसके साथ

अजीब थी वो सर्दी वाली बारिश की रात


उभर आई थी चेहरे पर उसके मासूम मुस्कान 

मिला उसे प्रस्ताव निकट बैठने का अनजान

फटे लिबासों में भी उसकी देव तुल्य काया थी

छोटी सी मासूम वो गुड़िया ,परियों की छाया थी

देख उसे लगा था, कितनी पीड़ाओं को दिया है मात 

अजीब सी थी वो सर्दी वाली बारिश की रात


चाहा जी भर बात करूँ, पूछूं उसके भी हालात

बजी फोन की घंटी तभी, रह गई अधूरी बात

गई चुकाने चाय के पैसे, पिया था हम दोनों ने जो 

पीछे मुड़ के देखा, नहीं वहाँ थी मुनिया वो

पड़े थे मेज पर कुछ पैसे, मैले कुचैले से कुछ जज़्बात

अजीब सी थी वो सर्दी वाली बारिश की रात


सोच रही थी मन ही मन, जाने कब मिल पाऊँ उससे

देकर गई थी कुछ तो वो, हलचल सी थी दिल में जिससे

कुछ आशाओं- निराशाओं से भरी थी वो मुलाक़ात

अजीब सी थी वो सर्दी वाली बारिश की रात



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